| Headword | Meanings | Verse | Verse Number | Page Number |
|---|---|---|---|---|
| अ | शार्ङ्गधारिन् | अः पुंल्लिङ्गः शार्ङ्गधारिण्यस्वल्पार्थेऽव्ययः पुनः । |
1.1.1.2 | 0119 |
| अ | अस्वल्पार्थ | अः पुंल्लिङ्गः शार्ङ्गधारिण्यस्वल्पार्थेऽव्ययः पुनः । |
1.1.1.2 | 0119 |
| आ | विरञ्चि | विरञ्चावाश्च पुल्लिङ्ग आ वाक्ये स्मरणेऽव्ययः ॥ २ ॥ |
1.1.1.2 | 0119 |
| आ | वाक्य | विरञ्चावाश्च पुल्लिङ्ग आ वाक्ये स्मरणेऽव्ययः ॥ २ ॥ |
1.1.1.2 | 0119 |
| आ | स्मरण | विरञ्चावाश्च पुल्लिङ्ग आ वाक्ये स्मरणेऽव्ययः ॥ २ ॥ |
1.1.1.2 | 0119 |
| आः | सन्ताप | आः सन्तापेऽव्यये क्रुध्यामव्ययोऽधृतौ स्मृतौ । |
1.1.1.3 | 0119 |
| आः | अव्यय | आः सन्तापेऽव्यये क्रुध्यामव्ययोऽधृतौ स्मृतौ । |
1.1.1.3 | 0119 |
| आः | क्रुध् | आः सन्तापेऽव्यये क्रुध्यामव्ययोऽधृतौ स्मृतौ । |
1.1.1.3 | 0119 |
| आम् | अवधृति | आः सन्तापेऽव्यये क्रुध्यामव्ययोऽधृतौ स्मृतौ । |
1.1.1.3 | 0119 |
| आम् | स्मृति | आः सन्तापेऽव्यये क्रुध्यामव्ययोऽधृतौ स्मृतौ । |
1.1.1.3 | 0119 |
| इ | काम | इः कामे पुल्लिङ्ग इ वाऽव्ययः कोपोक्तिखेदयोः ॥ ३ ॥ |
1.1.1.3 | 0119 |
| इ | कोपोक्ति | इः कामे पुल्लिङ्ग इ वाऽव्ययः कोपोक्तिखेदयोः ॥ ३ ॥ |
1.1.1.3 | 0119 |
| इ | खेद | इः कामे पुल्लिङ्ग इ वाऽव्ययः कोपोक्तिखेदयोः ॥ ३ ॥ |
1.1.1.3 | 0119 |
| ई | पद्मा | ईः पद्मायामव्ययस्त्वी प्रत्यक्षे दुःखभावने । प्रकोपे सन्निधौ चैव पुल्लिङ्ग उर्वृषध्वजे ॥ ४ ॥ |
1.1.1.4 | 0119 |
| ई | प्रत्यक्ष | ईः पद्मायामव्ययस्त्वी प्रत्यक्षे दुःखभावने । प्रकोपे सन्निधौ चैव पुल्लिङ्ग उर्वृषध्वजे ॥ ४ ॥ |
1.1.1.4 | 0119 |
| ई | दुःखभावन | ईः पद्मायामव्ययस्त्वी प्रत्यक्षे दुःखभावने । प्रकोपे सन्निधौ चैव पुल्लिङ्ग उर्वृषध्वजे ॥ ४ ॥ |
1.1.1.4 | 0119 |
| ई | प्रकोप | ईः पद्मायामव्ययस्त्वी प्रत्यक्षे दुःखभावने । प्रकोपे सन्निधौ चैव पुल्लिङ्ग उर्वृषध्वजे ॥ ४ ॥ |
1.1.1.4 | 0119 |
| ई | सन्निधि | ईः पद्मायामव्ययस्त्वी प्रत्यक्षे दुःखभावने । प्रकोपे सन्निधौ चैव पुल्लिङ्ग उर्वृषध्वजे ॥ ४ ॥ |
1.1.1.4 | 0119 |
| उ | वृषध्वज | ईः पद्मायामव्ययस्त्वी प्रत्यक्षे दुःखभावने । प्रकोपे सन्निधौ चैव पुल्लिङ्ग उर्वृषध्वजे ॥ ४ ॥ |
1.1.1.4 | 0119 |
| उ | दोषोक्ति | दोषोक्तौ मन्त्रणेऽप्यर्थे त्वव्ययस्त्वं व्ययस्तथा । प्रश्ने चाङ्गीकृतौ रोषो पुल्लिङ्ग ऊस्तु रक्षणे ॥ ५ ॥ |
1.1.1.5 | 0119 |
| उ | मन्त्रण | दोषोक्तौ मन्त्रणेऽप्यर्थे त्वव्ययस्त्वं व्ययस्तथा । प्रश्ने चाङ्गीकृतौ रोषो पुल्लिङ्ग ऊस्तु रक्षणे ॥ ५ ॥ |
1.1.1.5 | 0119 |
| उ | अप्यर्थ | दोषोक्तौ मन्त्रणेऽप्यर्थे त्वव्ययस्त्वं व्ययस्तथा । प्रश्ने चाङ्गीकृतौ रोषो पुल्लिङ्ग ऊस्तु रक्षणे ॥ ५ ॥ |
1.1.1.5 | 0119 |
| उ | व्यय | दोषोक्तौ मन्त्रणेऽप्यर्थे त्वव्ययस्त्वं व्ययस्तथा । प्रश्ने चाङ्गीकृतौ रोषो पुल्लिङ्ग ऊस्तु रक्षणे ॥ ५ ॥ |
1.1.1.5 | 0119 |
| उ | प्रश्न | दोषोक्तौ मन्त्रणेऽप्यर्थे त्वव्ययस्त्वं व्ययस्तथा । प्रश्ने चाङ्गीकृतौ रोषो पुल्लिङ्ग ऊस्तु रक्षणे ॥ ५ ॥ |
1.1.1.5 | 0119 |
| उ | अङ्गीकृति | दोषोक्तौ मन्त्रणेऽप्यर्थे त्वव्ययस्त्वं व्ययस्तथा । प्रश्ने चाङ्गीकृतौ रोषो पुल्लिङ्ग ऊस्तु रक्षणे ॥ ५ ॥ |
1.1.1.5 | 0119 |
| उ | रोष | दोषोक्तौ मन्त्रणेऽप्यर्थे त्वव्ययस्त्वं व्ययस्तथा । प्रश्ने चाङ्गीकृतौ रोषो पुल्लिङ्ग ऊस्तु रक्षणे ॥ ५ ॥ |
1.1.1.5 | 0119 |
| ऊ | रक्षण | दोषोक्तौ मन्त्रणेऽप्यर्थे त्वव्ययस्त्वं व्ययस्तथा । प्रश्ने चाङ्गीकृतौ रोषो पुल्लिङ्ग ऊस्तु रक्षणे ॥ ५ ॥ |
1.1.1.5 | 0119 |
| ऊ | प्रकोपोक्ति | ऊमव्ययः प्रकोपोक्तौ प्रश्ने ऋर्देवमातरि । |
1.1.1.6 | 0119 |
| ऊ | प्रश्न | ऊमव्ययः प्रकोपोक्तौ प्रश्ने ऋर्देवमातरि । |
1.1.1.6 | 0119 |
| ऋ | देवमातृ | ऊमव्ययः प्रकोपोक्तौ प्रश्ने ऋर्देवमातरि । |
1.1.1.6 | 0119 |
| ऋ | कुत्सा | अव्यय ऋ तु कुत्सायां वचनेऽपि तथैव च ॥ ६ ॥ |
1.1.1.6 | 0119 |
| ऋ | वचन | अव्यय ऋ तु कुत्सायां वचनेऽपि तथैव च ॥ ६ ॥ |
1.1.1.6 | 0119 |
| ॠ | अज | कुस्त्वजे दानवाञ्छायां ऌश्च स्याद् देवमातरि । |
1.1.1.7 | 0119 |
| ॠ | दानवाञ्छा | कुस्त्वजे दानवाञ्छायां ऌश्च स्याद् देवमातरि । |
1.1.1.7 | 0119 |
| ऌ | देवमातृ | कुस्त्वजे दानवाञ्छायां ऌश्च स्याद् देवमातरि । |
1.1.1.7 | 0119 |
| ॡ | वाराही | ॡर्वाराह्यां भवेदेस्तु विष्णावैस्तु वृषध्वजे ॥ ७ ॥ |
1.1.1.7 | 0119 |
| ए | विष्णु | ॡर्वाराह्यां भवेदेस्तु विष्णावैस्तु वृषध्वजे ॥ ७ ॥ |
1.1.1.7 | 0119 |
| ऐ | वृषध्वज | ॡर्वाराह्यां भवेदेस्तु विष्णावैस्तु वृषध्वजे ॥ ७ ॥ |
1.1.1.7 | 0119 |
| ओ | ऊर्ध्वलिङ्ग | ओरूर्ध्वलिङ्ग आहूतावव्ययः स्यादनन्त औः । |
1.1.1.8 | 0119 |
| ओ | आहूति | ओरूर्ध्वलिङ्ग आहूतावव्ययः स्यादनन्त औः । |
1.1.1.8 | 0119 |
| औ | अनन्त | ओरूर्ध्वलिङ्ग आहूतावव्ययः स्यादनन्त औः । |
1.1.1.8 | 0119 |
| औ | सम्बोधन | सम्बोधने चाव्यय औ परब्रह्मण्यमः शिवे ॥ ८ ॥ |
1.1.1.8 | 0119 |
| औ | परब्रह्मन् | सम्बोधने चाव्यय औ परब्रह्मण्यमः शिवे ॥ ८ ॥ |
1.1.1.8 | 0119 |
| औ | शिव | सम्बोधने चाव्यय औ परब्रह्मण्यमः शिवे ॥ ८ ॥ |
1.1.1.8 | 0119 |
| क | सूर्य | कः सूर्यमित्रवाय्वग्निब्रह्मात्मयमकेकिषु । प्रकाशवक्त्रयोश्चापि कं नीरसुर(ख)मूर्धसु ॥ ९ ॥ |
1.1.1.9 | 0119 |
| क | मित्र | कः सूर्यमित्रवाय्वग्निब्रह्मात्मयमकेकिषु । प्रकाशवक्त्रयोश्चापि कं नीरसुर(ख)मूर्धसु ॥ ९ ॥ |
1.1.1.9 | 0119 |
| क | वायु | कः सूर्यमित्रवाय्वग्निब्रह्मात्मयमकेकिषु । प्रकाशवक्त्रयोश्चापि कं नीरसुर(ख)मूर्धसु ॥ ९ ॥ |
1.1.1.9 | 0119 |
| क | अग्नि | कः सूर्यमित्रवाय्वग्निब्रह्मात्मयमकेकिषु । प्रकाशवक्त्रयोश्चापि कं नीरसुर(ख)मूर्धसु ॥ ९ ॥ |
1.1.1.9 | 0119 |
| क | ब्रह्मन् | कः सूर्यमित्रवाय्वग्निब्रह्मात्मयमकेकिषु । प्रकाशवक्त्रयोश्चापि कं नीरसुर(ख)मूर्धसु ॥ ९ ॥ |
1.1.1.9 | 0119 |
| क | आत्मन् | कः सूर्यमित्रवाय्वग्निब्रह्मात्मयमकेकिषु । प्रकाशवक्त्रयोश्चापि कं नीरसुर(ख)मूर्धसु ॥ ९ ॥ |
1.1.1.9 | 0119 |
| क | यम | कः सूर्यमित्रवाय्वग्निब्रह्मात्मयमकेकिषु । प्रकाशवक्त्रयोश्चापि कं नीरसुर(ख)मूर्धसु ॥ ९ ॥ |
1.1.1.9 | 0119 |
| क | केकिन् | कः सूर्यमित्रवाय्वग्निब्रह्मात्मयमकेकिषु । प्रकाशवक्त्रयोश्चापि कं नीरसुर(ख)मूर्धसु ॥ ९ ॥ |
1.1.1.9 | 0119 |
| क | प्रकाश | कः सूर्यमित्रवाय्वग्निब्रह्मात्मयमकेकिषु । प्रकाशवक्त्रयोश्चापि कं नीरसुर(ख)मूर्धसु ॥ ९ ॥ |
1.1.1.9 | 0119 |
| क | वक्त्र | कः सूर्यमित्रवाय्वग्निब्रह्मात्मयमकेकिषु । प्रकाशवक्त्रयोश्चापि कं नीरसुर(ख)मूर्धसु ॥ ९ ॥ |
1.1.1.9 | 0119 |
| क | नीर | कः सूर्यमित्रवाय्वग्निब्रह्मात्मयमकेकिषु । प्रकाशवक्त्रयोश्चापि कं नीरसुर(ख)मूर्धसु ॥ ९ ॥ |
1.1.1.9 | 0119 |
| क | सुर | कः सूर्यमित्रवाय्वग्निब्रह्मात्मयमकेकिषु । प्रकाशवक्त्रयोश्चापि कं नीरसुर(ख)मूर्धसु ॥ ९ ॥ |
1.1.1.9 | 0119 |
| क | मूर्धन् | कः सूर्यमित्रवाय्वग्निब्रह्मात्मयमकेकिषु । प्रकाशवक्त्रयोश्चापि कं नीरसुर(ख)मूर्धसु ॥ ९ ॥ |
1.1.1.9 | 0119 |
| कु | भू | कुर्भूकुत्सितशब्देषु पापीयसि निवारणे । ईषदर्थे च किंशब्दः कुत्सने क्षेपप्रश्नयोः ॥ १० ॥ |
1.1.1.10 | 0119 |
| कु | कुत्सित | कुर्भूकुत्सितशब्देषु पापीयसि निवारणे । ईषदर्थे च किंशब्दः कुत्सने क्षेपप्रश्नयोः ॥ १० ॥ |
1.1.1.10 | 0119 |
| कु | शब्द | कुर्भूकुत्सितशब्देषु पापीयसि निवारणे । ईषदर्थे च किंशब्दः कुत्सने क्षेपप्रश्नयोः ॥ १० ॥ |
1.1.1.10 | 0119 |
| कु | पापीयस् | कुर्भूकुत्सितशब्देषु पापीयसि निवारणे । ईषदर्थे च किंशब्दः कुत्सने क्षेपप्रश्नयोः ॥ १० ॥ |
1.1.1.10 | 0119 |
| कु | निवारण | कुर्भूकुत्सितशब्देषु पापीयसि निवारणे । ईषदर्थे च किंशब्दः कुत्सने क्षेपप्रश्नयोः ॥ १० ॥ |
1.1.1.10 | 0119 |
| कु | ईषदर्थ | कुर्भूकुत्सितशब्देषु पापीयसि निवारणे । ईषदर्थे च किंशब्दः कुत्सने क्षेपप्रश्नयोः ॥ १० ॥ |
1.1.1.10 | 0119 |
| किम् | कुत्सन | कुर्भूकुत्सितशब्देषु पापीयसि निवारणे । ईषदर्थे च किंशब्दः कुत्सने क्षेपप्रश्नयोः ॥ १० ॥ |
1.1.1.10 | 0119 |
| किम् | क्षेप | कुर्भूकुत्सितशब्देषु पापीयसि निवारणे । ईषदर्थे च किंशब्दः कुत्सने क्षेपप्रश्नयोः ॥ १० ॥ |
1.1.1.10 | 0119 |
| किम् | प्रश्न | कुर्भूकुत्सितशब्देषु पापीयसि निवारणे । ईषदर्थे च किंशब्दः कुत्सने क्षेपप्रश्नयोः ॥ १० ॥ |
1.1.1.10 | 0119 |
| किम् | वितर्क | कुर्भूकुत्सितशब्देषु पापीयसि निवारणे । ईषदर्थे च किंशब्दः कुत्सने क्षेपप्रश्नयोः ॥ १० ॥ |
1.1.1.10 | 0119 |
| किम् | आश्चर्य | कुर्भूकुत्सितशब्देषु पापीयसि निवारणे । ईषदर्थे च किंशब्दः कुत्सने क्षेपप्रश्नयोः ॥ १० ॥ |
1.1.1.10 | 0119 |
| किम् | निन्दा | कुर्भूकुत्सितशब्देषु पापीयसि निवारणे । ईषदर्थे च किंशब्दः कुत्सने क्षेपप्रश्नयोः ॥ १० ॥ |
1.1.1.10 | 0119 |
| किम् | वितर्क | वितर्काश्चर्यनिन्दासु किंशब्दः स्यात् कियानपि । |
1.1.1.11 | 0119 |
| किम् | आश्चर्य | वितर्काश्चर्यनिन्दासु किंशब्दः स्यात् कियानपि । |
1.1.1.11 | 0119 |
| किम् | निन्दा | वितर्काश्चर्यनिन्दासु किंशब्दः स्यात् कियानपि । |
1.1.1.11 | 0119 |
| कियत् | वितर्क | वितर्काश्चर्यनिन्दासु किंशब्दः स्यात् कियानपि । |
1.1.1.11 | 0119 |
| कियत् | आश्चर्य | वितर्काश्चर्यनिन्दासु किंशब्दः स्यात् कियानपि । |
1.1.1.11 | 0119 |
| कियत् | निन्दा | वितर्काश्चर्यनिन्दासु किंशब्दः स्यात् कियानपि । |
1.1.1.11 | 0119 |
| ख | इन्द्रिय | खमिन्द्रियस्वर्गशून्यभूपाकाशसुखेषु च ॥ ११ ॥ |
1.1.1.11 | 0120 |
| ख | स्वर्ग | खमिन्द्रियस्वर्गशून्यभूपाकाशसुखेषु च ॥ ११ ॥ |
1.1.1.11 | 0120 |
| ख | शून्य | खमिन्द्रियस्वर्गशून्यभूपाकाशसुखेषु च ॥ ११ ॥ |
1.1.1.11 | 0120 |
| ख | भूप | खमिन्द्रियस्वर्गशून्यभूपाकाशसुखेषु च ॥ ११ ॥ |
1.1.1.11 | 0120 |
| ख | आकाश | खमिन्द्रियस्वर्गशून्यभूपाकाशसुखेषु च ॥ ११ ॥ |
1.1.1.11 | 0120 |
| ख | सुख | खमिन्द्रियस्वर्गशून्यभूपाकाशसुखेषु च ॥ ११ ॥ |
1.1.1.11 | 0120 |
| ख | संविद् | संविदि शून्यखण्डे च वर्तते खश्च भास्करे । |
1.1.1.12 | 0120 |
| ख | शून्यखण्ड | संविदि शून्यखण्डे च वर्तते खश्च भास्करे । |
1.1.1.12 | 0120 |
| ख | भास्कर | संविदि शून्यखण्डे च वर्तते खश्च भास्करे । |
1.1.1.12 | 0120 |
| ग | गन्धर्व | गो गन्धर्वे गणेशे च गीते गं गश्च गातरि ॥ १२ ॥ |
1.1.1.12 | 0120 |
| ग | गणेश | गो गन्धर्वे गणेशे च गीते गं गश्च गातरि ॥ १२ ॥ |
1.1.1.12 | 0120 |
| ग | गीत | गो गन्धर्वे गणेशे च गीते गं गश्च गातरि ॥ १२ ॥ |
1.1.1.12 | 0120 |
| ग | गातृ | गो गन्धर्वे गणेशे च गीते गं गश्च गातरि ॥ १२ ॥ |
1.1.1.12 | 0120 |
| ग | गातृ | गो गन्धर्वे गणेशे च गीते गं गश्च गातरि ॥ १२ ॥ |
1.1.1.12 | 0120 |
| गो | वाणी | गौर्वाणीबाणभूरश्मिवज्रस्वर्गाक्षिवारिषु । दिशि धेनौ श्रुतैश्वर्यां गणेशे वाऽपि गौः स्मृतः ॥ १३ ॥ |
1.1.1.13 | 0120 |
| गो | बाण | गौर्वाणीबाणभूरश्मिवज्रस्वर्गाक्षिवारिषु । दिशि धेनौ श्रुतैश्वर्यां गणेशे वाऽपि गौः स्मृतः ॥ १३ ॥ |
1.1.1.13 | 0120 |
| गो | भू | गौर्वाणीबाणभूरश्मिवज्रस्वर्गाक्षिवारिषु । दिशि धेनौ श्रुतैश्वर्यां गणेशे वाऽपि गौः स्मृतः ॥ १३ ॥ |
1.1.1.13 | 0120 |
| गो | रश्मि | गौर्वाणीबाणभूरश्मिवज्रस्वर्गाक्षिवारिषु । दिशि धेनौ श्रुतैश्वर्यां गणेशे वाऽपि गौः स्मृतः ॥ १३ ॥ |
1.1.1.13 | 0120 |
| गो | वज्र | गौर्वाणीबाणभूरश्मिवज्रस्वर्गाक्षिवारिषु । दिशि धेनौ श्रुतैश्वर्यां गणेशे वाऽपि गौः स्मृतः ॥ १३ ॥ |
1.1.1.13 | 0120 |
| गो | स्वर्ग | गौर्वाणीबाणभूरश्मिवज्रस्वर्गाक्षिवारिषु । दिशि धेनौ श्रुतैश्वर्यां गणेशे वाऽपि गौः स्मृतः ॥ १३ ॥ |
1.1.1.13 | 0120 |
| गो | अक्षि | गौर्वाणीबाणभूरश्मिवज्रस्वर्गाक्षिवारिषु । दिशि धेनौ श्रुतैश्वर्यां गणेशे वाऽपि गौः स्मृतः ॥ १३ ॥ |
1.1.1.13 | 0120 |
| गो | वारि | गौर्वाणीबाणभूरश्मिवज्रस्वर्गाक्षिवारिषु । दिशि धेनौ श्रुतैश्वर्यां गणेशे वाऽपि गौः स्मृतः ॥ १३ ॥ |
1.1.1.13 | 0120 |
| गो | दिश् | गौर्वाणीबाणभूरश्मिवज्रस्वर्गाक्षिवारिषु । दिशि धेनौ श्रुतैश्वर्यां गणेशे वाऽपि गौः स्मृतः ॥ १३ ॥ |
1.1.1.13 | 0120 |
| गो | धेनु | गौर्वाणीबाणभूरश्मिवज्रस्वर्गाक्षिवारिषु । दिशि धेनौ श्रुतैश्वर्यां गणेशे वाऽपि गौः स्मृतः ॥ १३ ॥ |
1.1.1.13 | 0120 |
| गो | श्रुतैश्वरी | गौर्वाणीबाणभूरश्मिवज्रस्वर्गाक्षिवारिषु । दिशि धेनौ श्रुतैश्वर्यां गणेशे वाऽपि गौः स्मृतः ॥ १३ ॥ |
1.1.1.13 | 0120 |
| गो | गणेश | गौर्वाणीबाणभूरश्मिवज्रस्वर्गाक्षिवारिषु । दिशि धेनौ श्रुतैश्वर्यां गणेशे वाऽपि गौः स्मृतः ॥ १३ ॥ |
1.1.1.13 | 0120 |
| घु | कुम्भ | घुः कुम्भे हनने घोषान्तर्भावकिङ्किणीष्वपि । |
1.1.1.14 | 0120 |
| घु | हनन | घुः कुम्भे हनने घोषान्तर्भावकिङ्किणीष्वपि । |
1.1.1.14 | 0120 |
| घु | घोष | घुः कुम्भे हनने घोषान्तर्भावकिङ्किणीष्वपि । |
1.1.1.14 | 0120 |
| घु | अन्तर्भाव | घुः कुम्भे हनने घोषान्तर्भावकिङ्किणीष्वपि । |
1.1.1.14 | 0120 |
| घु | किङ्किणी | घुः कुम्भे हनने घोषान्तर्भावकिङ्किणीष्वपि । |
1.1.1.14 | 0120 |
| ङ | विषय | ङो विषये भैरवे च चस्तरौ चन्द्रचोरयोः ॥ १४ ॥ |
1.1.1.14 | 0120 |
| ङ | भैरव | ङो विषये भैरवे च चस्तरौ चन्द्रचोरयोः ॥ १४ ॥ |
1.1.1.14 | 0120 |
| च | तरु | ङो विषये भैरवे च चस्तरौ चन्द्रचोरयोः ॥ १४ ॥ |
1.1.1.14 | 0120 |
| च | चन्द्र | ङो विषये भैरवे च चस्तरौ चन्द्रचोरयोः ॥ १४ ॥ |
1.1.1.14 | 0120 |
| च | चोर | ङो विषये भैरवे च चस्तरौ चन्द्रचोरयोः ॥ १४ ॥ |
1.1.1.14 | 0120 |
| चु | चकोर | चुश्चकोरे समाख्यातश्चकारः पुनरव्ययः । अन्योन्यार्थे विकल्पार्थे समासे पादपूरणे ॥ १५ ॥ |
1.1.1.15 | 0120 |
| च | अन्योन्यार्थ | चुश्चकोरे समाख्यातश्चकारः पुनरव्ययः । अन्योन्यार्थे विकल्पार्थे समासे पादपूरणे ॥ १५ ॥ |
1.1.1.15 | 0120 |
| च | विकल्पार्थ | चुश्चकोरे समाख्यातश्चकारः पुनरव्ययः । अन्योन्यार्थे विकल्पार्थे समासे पादपूरणे ॥ १५ ॥ |
1.1.1.15 | 0120 |
| च | समास | चुश्चकोरे समाख्यातश्चकारः पुनरव्ययः । अन्योन्यार्थे विकल्पार्थे समासे पादपूरणे ॥ १५ ॥ |
1.1.1.15 | 0120 |
| च | पादपूरण | चुश्चकोरे समाख्यातश्चकारः पुनरव्ययः । अन्योन्यार्थे विकल्पार्थे समासे पादपूरणे ॥ १५ ॥ |
1.1.1.15 | 0120 |
| च | पक्षान्तर | पक्षान्तरे समूहार्थे हेताववधृतावपि । अन्वान्व(च)ये तथा तुल्ययोगितायां च कीर्तितः ॥ १६ ॥ |
1.1.1.16 | 0120 |
| च | समूहार्थ | पक्षान्तरे समूहार्थे हेताववधृतावपि । अन्वान्व(च)ये तथा तुल्ययोगितायां च कीर्तितः ॥ १६ ॥ |
1.1.1.16 | 0120 |
| च | हेतु | पक्षान्तरे समूहार्थे हेताववधृतावपि । अन्वान्व(च)ये तथा तुल्ययोगितायां च कीर्तितः ॥ १६ ॥ |
1.1.1.16 | 0120 |
| च | अवधृति | पक्षान्तरे समूहार्थे हेताववधृतावपि । अन्वान्व(च)ये तथा तुल्ययोगितायां च कीर्तितः ॥ १६ ॥ |
1.1.1.16 | 0120 |
| च | अन्वान्वय | पक्षान्तरे समूहार्थे हेताववधृतावपि । अन्वान्व(च)ये तथा तुल्ययोगितायां च कीर्तितः ॥ १६ ॥ |
1.1.1.16 | 0120 |
| च | तुल्ययोगिता | पक्षान्तरे समूहार्थे हेताववधृतावपि । अन्वान्व(च)ये तथा तुल्ययोगितायां च कीर्तितः ॥ १६ ॥ |
1.1.1.16 | 0120 |
| छ | सूर्य | छः सूर्ये छेदके ख्यातस्तथा संवरणे भवेत् । |
1.1.1.17 | 0120 |
| छ | छेदक | छः सूर्ये छेदके ख्यातस्तथा संवरणे भवेत् । |
1.1.1.17 | 0120 |
| छ | संवरण | छः सूर्ये छेदके ख्यातस्तथा संवरणे भवेत् । |
1.1.1.17 | 0120 |
| छ | छन्दस् | छं च छन्दसि तडिति निर्मले च तथा स्मृतः ॥ १७ ॥ |
1.1.1.17 | 0120 |
| छ | तडित् | छं च छन्दसि तडिति निर्मले च तथा स्मृतः ॥ १७ ॥ |
1.1.1.17 | 0120 |
| छ | निर्मल | छं च छन्दसि तडिति निर्मले च तथा स्मृतः ॥ १७ ॥ |
1.1.1.17 | 0120 |
| ज | जेतृ | जश्च जेतरि जनने विगते जिस्तु जेतरि । |
1.1.1.18 | 0120 |
| ज | जनन | जश्च जेतरि जनने विगते जिस्तु जेतरि । |
1.1.1.18 | 0120 |
| ज | विगत | जश्च जेतरि जनने विगते जिस्तु जेतरि । |
1.1.1.18 | 0120 |
| जि | जेतृ | जश्च जेतरि जनने विगते जिस्तु जेतरि । |
1.1.1.18 | 0120 |
| जू | विहायस् | जूर्विहायसि जवने पिशाच्यां विगतेऽपि च ॥ १८ ॥ |
1.1.1.18 | 0120 |
| जू | जवन | जूर्विहायसि जवने पिशाच्यां विगतेऽपि च ॥ १८ ॥ |
1.1.1.18 | 0120 |
| जू | पिशाची | जूर्विहायसि जवने पिशाच्यां विगतेऽपि च ॥ १८ ॥ |
1.1.1.18 | 0120 |
| जू | विगत | जूर्विहायसि जवने पिशाच्यां विगतेऽपि च ॥ १८ ॥ |
1.1.1.18 | 0120 |
| झ | नक्तं गायने | झो नक्तं गायने नष्टे घर्घरध्वनिनामनि । चारुवाक्चरयोर्झस्तु व्यूहिते गूढरूपके ॥ १९ ॥ |
1.1.1.19 | 0120 |
| झ | नष्ट | झो नक्तं गायने नष्टे घर्घरध्वनिनामनि । चारुवाक्चरयोर्झस्तु व्यूहिते गूढरूपके ॥ १९ ॥ |
1.1.1.19 | 0120 |
| झ | घर्घरध्वनिनामन् | झो नक्तं गायने नष्टे घर्घरध्वनिनामनि । चारुवाक्चरयोर्झस्तु व्यूहिते गूढरूपके ॥ १९ ॥ |
1.1.1.19 | 0120 |
| झ | चारुवाक् | झो नक्तं गायने नष्टे घर्घरध्वनिनामनि । चारुवाक्चरयोर्झस्तु व्यूहिते गूढरूपके ॥ १९ ॥ |
1.1.1.19 | 0120 |
| झ | चोर | झो नक्तं गायने नष्टे घर्घरध्वनिनामनि । चारुवाक्चरयोर्झस्तु व्यूहिते गूढरूपके ॥ १९ ॥ |
1.1.1.19 | 0120 |
| झ | व्यूहित | झो नक्तं गायने नष्टे घर्घरध्वनिनामनि । चारुवाक्चरयोर्झस्तु व्यूहिते गूढरूपके ॥ १९ ॥ |
1.1.1.19 | 0120 |
| झ | गूढरूपक | झो नक्तं गायने नष्टे घर्घरध्वनिनामनि । चारुवाक्चरयोर्झस्तु व्यूहिते गूढरूपके ॥ १९ ॥ |
1.1.1.19 | 0120 |
| ट | पृथिवी | टः पृथिव्यां ध्वनौ वायौ करके टं पुनर्भुवि । चकोरेऽब्दे तथा ठस्तु घेण्टे शून्ये बृहद्वनौ ॥ २० ॥ |
1.1.1.20 | 0120 |
| ट | ध्वनि | टः पृथिव्यां ध्वनौ वायौ करके टं पुनर्भुवि । चकोरेऽब्दे तथा ठस्तु घेण्टे शून्ये बृहद्वनौ ॥ २० ॥ |
1.1.1.20 | 0120 |
| ट | वायु | टः पृथिव्यां ध्वनौ वायौ करके टं पुनर्भुवि । चकोरेऽब्दे तथा ठस्तु घेण्टे शून्ये बृहद्वनौ ॥ २० ॥ |
1.1.1.20 | 0120 |
| ट | करङ्क | टः पृथिव्यां ध्वनौ वायौ करके टं पुनर्भुवि । चकोरेऽब्दे तथा ठस्तु घेण्टे शून्ये बृहद्वनौ ॥ २० ॥ |
1.1.1.20 | 0120 |
| ट | भू | टः पृथिव्यां ध्वनौ वायौ करके टं पुनर्भुवि । चकोरेऽब्दे तथा ठस्तु घेण्टे शून्ये बृहद्वनौ ॥ २० ॥ |
1.1.1.20 | 0120 |
| ट | चकोर | टः पृथिव्यां ध्वनौ वायौ करके टं पुनर्भुवि । चकोरेऽब्दे तथा ठस्तु घेण्टे शून्ये बृहद्वनौ ॥ २० ॥ |
1.1.1.20 | 0120 |
| ट | अब्द | टः पृथिव्यां ध्वनौ वायौ करके टं पुनर्भुवि । चकोरेऽब्दे तथा ठस्तु घेण्टे शून्ये बृहद्वनौ ॥ २० ॥ |
1.1.1.20 | 0120 |
| ठ | घण्ट | टः पृथिव्यां ध्वनौ वायौ करके टं पुनर्भुवि । चकोरेऽब्दे तथा ठस्तु घेण्टे शून्ये बृहद्वनौ ॥ २० ॥ |
1.1.1.20 | 0120 |
| ठ | शून्य | टः पृथिव्यां ध्वनौ वायौ करके टं पुनर्भुवि । चकोरेऽब्दे तथा ठस्तु घेण्टे शून्ये बृहद्वनौ ॥ २० ॥ |
1.1.1.20 | 0120 |
| ठ | बृहद्ध्वनि | टः पृथिव्यां ध्वनौ वायौ करके टं पुनर्भुवि । चकोरेऽब्दे तथा ठस्तु घेण्टे शून्ये बृहद्वनौ ॥ २० ॥ |
1.1.1.20 | 0120 |
| ठ | चन्द्रस्य मण्डल | चन्द्रस्य मण्डले रुद्रेऽथो वृषाङ्के ध्वनावपि । बन्दिवृन्दे तथा डः स्यात् यामिनीपतिमण्डले ॥ २१ ॥ |
1.1.1.21 | 0120 |
| ठ | रुद्र | चन्द्रस्य मण्डले रुद्रेऽथो वृषाङ्के ध्वनावपि । बन्दिवृन्दे तथा डः स्यात् यामिनीपतिमण्डले ॥ २१ ॥ |
1.1.1.21 | 0120 |
| ठ | वृषाङ्क | चन्द्रस्य मण्डले रुद्रेऽथो वृषाङ्के ध्वनावपि । बन्दिवृन्दे तथा डः स्यात् यामिनीपतिमण्डले ॥ २१ ॥ |
1.1.1.21 | 0120 |
| ठ | ध्वनि | चन्द्रस्य मण्डले रुद्रेऽथो वृषाङ्के ध्वनावपि । बन्दिवृन्दे तथा डः स्यात् यामिनीपतिमण्डले ॥ २१ ॥ |
1.1.1.21 | 0120 |
| ठ | बन्दिवृन्द | चन्द्रस्य मण्डले रुद्रेऽथो वृषाङ्के ध्वनावपि । बन्दिवृन्दे तथा डः स्यात् यामिनीपतिमण्डले ॥ २१ ॥ |
1.1.1.21 | 0120 |
| ड | यामिनीपतिमण्डल | चन्द्रस्य मण्डले रुद्रेऽथो वृषाङ्के ध्वनावपि । बन्दिवृन्दे तथा डः स्यात् यामिनीपतिमण्डले ॥ २१ ॥ |
1.1.1.21 | 0120 |
| ढ | ढक्का | ढो ढक्कायां समाख्यातस्तथा ढा निर्गुणे ध्वनौ । |
1.1.1.22 | 0120 |
| ढा | निर्गुण | ढो ढक्कायां समाख्यातस्तथा ढा निर्गुणे ध्वनौ । |
1.1.1.22 | 0120 |
| ढा | ध्वनि | ढो ढक्कायां समाख्यातस्तथा ढा निर्गुणे ध्वनौ । |
1.1.1.22 | 0120 |
| ण | प्रकट | णः प्रकटे निष्फले च प्रस्तुते ज्ञानबन्धयोः ॥ २२ ॥ |
1.1.1.22 | 0120 |
| ण | निष्फल | णः प्रकटे निष्फले च प्रस्तुते ज्ञानबन्धयोः ॥ २२ ॥ |
1.1.1.22 | 0120 |
| ण | प्रस्तुत | णः प्रकटे निष्फले च प्रस्तुते ज्ञानबन्धयोः ॥ २२ ॥ |
1.1.1.22 | 0120 |
| ण | ज्ञान | णः प्रकटे निष्फले च प्रस्तुते ज्ञानबन्धयोः ॥ २२ ॥ |
1.1.1.22 | 0120 |
| ण | बन्ध | णः प्रकटे निष्फले च प्रस्तुते ज्ञानबन्धयोः ॥ २२ ॥ |
1.1.1.22 | 0120 |
| त | तस्कर | तकारस्तस्करे युद्धे क्रोडे पुच्छे च ता श्रियाम् । |
1.1.1.23 | 0120 |
| त | युद्ध | तकारस्तस्करे युद्धे क्रोडे पुच्छे च ता श्रियाम् । |
1.1.1.23 | 0120 |
| त | क्रोड | तकारस्तस्करे युद्धे क्रोडे पुच्छे च ता श्रियाम् । |
1.1.1.23 | 0120 |
| त | पुच्छ | तकारस्तस्करे युद्धे क्रोडे पुच्छे च ता श्रियाम् । |
1.1.1.23 | 0120 |
| ता | श्री | तकारस्तस्करे युद्धे क्रोडे पुच्छे च ता श्रियाम् । |
1.1.1.23 | 0120 |
| तु | पूर्व | तुः स्यात् पूर्वे निवृत्तौ च पूर्वस्मादवधारणे ॥ २३ ॥ |
1.1.1.23 | 0120 |
| तु | निवृत्ति | तुः स्यात् पूर्वे निवृत्तौ च पूर्वस्मादवधारणे ॥ २३ ॥ |
1.1.1.23 | 0120 |
| तु | पूर्वस्माद् अवधारण | तुः स्यात् पूर्वे निवृत्तौ च पूर्वस्मादवधारणे ॥ २३ ॥ |
1.1.1.23 | 0120 |
| तु | विलक्षण | विलक्षणे विकल्पार्थे थो भवेद् भयरक्षणे । |
1.1.1.24 | 0120 |
| तु | विकल्पार्थ | विलक्षणे विकल्पार्थे थो भवेद् भयरक्षणे । |
1.1.1.24 | 0120 |
| थ | भयरक्षण | विलक्षणे विकल्पार्थे थो भवेद् भयरक्षणे । |
1.1.1.24 | 0120 |
| थ | भूधर | विलक्षणे विकल्पार्थे थो भवेद् भयरक्षणे । |
1.1.1.24 | 0120 |
| थ | भार | विलक्षणे विकल्पार्थे थो भवेद् भयरक्षणे । |
1.1.1.24 | 0120 |
| द | दान | विलक्षणे विकल्पार्थे थो भवेद् भयरक्षणे । |
1.1.1.24 | 0120 |
| द | दायक | विलक्षणे विकल्पार्थे थो भवेद् भयरक्षणे । |
1.1.1.24 | 0120 |
| दा | दान | दाने दातरि दा केचिद् विदुर्दा छेदबन्धयोः । |
1.1.1.25 | 0120 |
| दा | दातृ | दाने दातरि दा केचिद् विदुर्दा छेदबन्धयोः । |
1.1.1.25 | 0120 |
| दा | छेद | दाने दातरि दा केचिद् विदुर्दा छेदबन्धयोः । |
1.1.1.25 | 0120 |
| दा | बन्ध | दाने दातरि दा केचिद् विदुर्दा छेदबन्धयोः । |
1.1.1.25 | 0120 |
| द | कलत्र | दं कलत्रं तथा धं च धीरे च धनदे धने ॥ २५ ॥ |
1.1.1.25 | 0121 |
| ध | धीर | दं कलत्रं तथा धं च धीरे च धनदे धने ॥ २५ ॥ |
1.1.1.25 | 0121 |
| ध | धनद | दं कलत्रं तथा धं च धीरे च धनदे धने ॥ २५ ॥ |
1.1.1.25 | 0121 |
| ध | धन | दं कलत्रं तथा धं च धीरे च धनदे धने ॥ २५ ॥ |
1.1.1.25 | 0121 |
| ध | चित्र | धस्तु चित्रेऽश्ववारे च धीर्बुद्धाविषुधावपि । |
1.1.1.26 | 0121 |
| ध | अश्ववार | धस्तु चित्रेऽश्ववारे च धीर्बुद्धाविषुधावपि । |
1.1.1.26 | 0121 |
| धी | बुद्धि | धस्तु चित्रेऽश्ववारे च धीर्बुद्धाविषुधावपि । |
1.1.1.26 | 0121 |
| धी | इषुधि | धस्तु चित्रेऽश्ववारे च धीर्बुद्धाविषुधावपि । |
1.1.1.26 | 0121 |
| धृ | गुह्यकेश | गुह्यकेशे विरञ्चौ धा तथा धूर्भारकम्पयोः ॥ २६ ॥ |
1.1.1.26 | 0121 |
| धृ | विरञ्चि | गुह्यकेशे विरञ्चौ धा तथा धूर्भारकम्पयोः ॥ २६ ॥ |
1.1.1.26 | 0121 |
| धू | भार | गुह्यकेशे विरञ्चौ धा तथा धूर्भारकम्पयोः ॥ २६ ॥ |
1.1.1.26 | 0121 |
| धू | कम्प | गुह्यकेशे विरञ्चौ धा तथा धूर्भारकम्पयोः ॥ २६ ॥ |
1.1.1.26 | 0121 |
| धू | धुरा | धूर्ते धुरा कम्पने च नो बुद्धौ ज्ञानबन्धयोः । |
1.1.1.27 | 0121 |
| धू | कम्पन | धूर्ते धुरा कम्पने च नो बुद्धौ ज्ञानबन्धयोः । |
1.1.1.27 | 0121 |
| न | बुद्धौ | धूर्ते धुरा कम्पने च नो बुद्धौ ज्ञानबन्धयोः । |
1.1.1.27 | 0121 |
| न | ज्ञान | धूर्ते धुरा कम्पने च नो बुद्धौ ज्ञानबन्धयोः । |
1.1.1.27 | 0121 |
| न | बन्ध | धूर्ते धुरा कम्पने च नो बुद्धौ ज्ञानबन्धयोः । |
1.1.1.27 | 0121 |
| नः | अस्मान् | अस्मानमभ्यममाकमेषां स्थाने भवेञ्च नः ॥ २७ ॥ |
1.1.1.27 | 0121 |
| नः | अस्मभ्यम् | अस्मानमभ्यममाकमेषां स्थाने भवेञ्च नः ॥ २७ ॥ |
1.1.1.27 | 0121 |
| नः | अस्माकम् | अस्मानमभ्यममाकमेषां स्थाने भवेञ्च नः ॥ २७ ॥ |
1.1.1.27 | 0121 |
| नो | निषेधार्थ | निषेधार्थेऽव्ययो नो च नकारस्तु नरस्तु ना । |
1.1.1.28 | 0121 |
| न | निषेधार्थ | निषेधार्थेऽव्ययो नो च नकारस्तु नरस्तु ना । |
1.1.1.28 | 0121 |
| नृ | नर | निषेधार्थेऽव्ययो नो च नकारस्तु नरस्तु ना । |
1.1.1.28 | 0121 |
| नि | श्रुत | निः श्रुते नेतरि ख्यातौ नुः स्तुतावव्ययस्तु नौ ॥ २८ ॥ |
1.1.1.28 | 0121 |
| नि | नेतृ | निः श्रुते नेतरि ख्यातौ नुः स्तुतावव्ययस्तु नौ ॥ २८ ॥ |
1.1.1.28 | 0121 |
| नु | स्तुति | निः श्रुते नेतरि ख्यातौ नुः स्तुतावव्ययस्तु नौ ॥ २८ ॥ |
1.1.1.28 | 0121 |
| नौ | ? | निः श्रुते नेतरि ख्यातौ नुः स्तुतावव्ययस्तु नौ ॥ २८ ॥ |
1.1.1.28 | 0121 |
| नि | क्षय | निः स्यात् क्षये च नित्यार्थे भृशार्थाश्रयराशिषु । कौशले बन्धने मोक्षे संशये दानकर्मणि ॥ २९ ॥ |
1.1.1.29 | 0121 |
| नि | नित्यार्थ | निः स्यात् क्षये च नित्यार्थे भृशार्थाश्रयराशिषु । कौशले बन्धने मोक्षे संशये दानकर्मणि ॥ २९ ॥ |
1.1.1.29 | 0121 |
| नि | भृशार्थ | निः स्यात् क्षये च नित्यार्थे भृशार्थाश्रयराशिषु । कौशले बन्धने मोक्षे संशये दानकर्मणि ॥ २९ ॥ |
1.1.1.29 | 0121 |
| नि | आश्रय | निः स्यात् क्षये च नित्यार्थे भृशार्थाश्रयराशिषु । कौशले बन्धने मोक्षे संशये दानकर्मणि ॥ २९ ॥ |
1.1.1.29 | 0121 |
| नि | राशि | निः स्यात् क्षये च नित्यार्थे भृशार्थाश्रयराशिषु । कौशले बन्धने मोक्षे संशये दानकर्मणि ॥ २९ ॥ |
1.1.1.29 | 0121 |
| नि | कौशल | निः स्यात् क्षये च नित्यार्थे भृशार्थाश्रयराशिषु । कौशले बन्धने मोक्षे संशये दानकर्मणि ॥ २९ ॥ |
1.1.1.29 | 0121 |
| नि | बन्धन | निः स्यात् क्षये च नित्यार्थे भृशार्थाश्रयराशिषु । कौशले बन्धने मोक्षे संशये दानकर्मणि ॥ २९ ॥ |
1.1.1.29 | 0121 |
| नि | मोक्ष | निः स्यात् क्षये च नित्यार्थे भृशार्थाश्रयराशिषु । कौशले बन्धने मोक्षे संशये दानकर्मणि ॥ २९ ॥ |
1.1.1.29 | 0121 |
| नि | दानकर्मन् | निः स्यात् क्षये च नित्यार्थे भृशार्थाश्रयराशिषु । कौशले बन्धने मोक्षे संशये दानकर्मणि ॥ २९ ॥ |
1.1.1.29 | 0121 |
| नि | अधोभाव | अधोभावोपरमयोः सन्निधानेऽव्ययो मतः । |
1.1.1.30 | 0121 |
| नि | उपरम | अधोभावोपरमयोः सन्निधानेऽव्ययो मतः । |
1.1.1.30 | 0121 |
| नि | सन्निधान | अधोभावोपरमयोः सन्निधानेऽव्ययो मतः । |
1.1.1.30 | 0121 |
| नु | प्रश्न | नुः प्रश्ने च वितर्के च विकल्पेऽनुशयेऽव्ययः ॥ ३० ॥ |
1.1.1.30 | 0121 |
| नु | वितर्क | नुः प्रश्ने च वितर्के च विकल्पेऽनुशयेऽव्ययः ॥ ३० ॥ |
1.1.1.30 | 0121 |
| नु | विकल्प | नुः प्रश्ने च वितर्के च विकल्पेऽनुशयेऽव्ययः ॥ ३० ॥ |
1.1.1.30 | 0121 |
| नु | अनुशय | नुः प्रश्ने च वितर्के च विकल्पेऽनुशयेऽव्ययः ॥ ३० ॥ |
1.1.1.30 | 0121 |
| नौ | तरणी | तरण्यां नौस्तथा ख्यातः पः पाने पवने पथि । प्रौढे च वर्णके पश्च पा पातरि तथा श्रुते ॥ ३१ ॥ |
1.1.1.31 | 0121 |
| प | पान | तरण्यां नौस्तथा ख्यातः पः पाने पवने पथि । प्रौढे च वर्णके पश्च पा पातरि तथा श्रुते ॥ ३१ ॥ |
1.1.1.31 | 0121 |
| प | पवन | तरण्यां नौस्तथा ख्यातः पः पाने पवने पथि । प्रौढे च वर्णके पश्च पा पातरि तथा श्रुते ॥ ३१ ॥ |
1.1.1.31 | 0121 |
| प | पथन् | तरण्यां नौस्तथा ख्यातः पः पाने पवने पथि । प्रौढे च वर्णके पश्च पा पातरि तथा श्रुते ॥ ३१ ॥ |
1.1.1.31 | 0121 |
| प | प्रौढ | तरण्यां नौस्तथा ख्यातः पः पाने पवने पथि । प्रौढे च वर्णके पश्च पा पातरि तथा श्रुते ॥ ३१ ॥ |
1.1.1.31 | 0121 |
| प | वर्णक | तरण्यां नौस्तथा ख्यातः पः पाने पवने पथि । प्रौढे च वर्णके पश्च पा पातरि तथा श्रुते ॥ ३१ ॥ |
1.1.1.31 | 0121 |
| पा | पातृ | तरण्यां नौस्तथा ख्यातः पः पाने पवने पथि । प्रौढे च वर्णके पश्च पा पातरि तथा श्रुते ॥ ३१ ॥ |
1.1.1.31 | 0121 |
| पा | श्रुते | तरण्यां नौस्तथा ख्यातः पः पाने पवने पथि । प्रौढे च वर्णके पश्च पा पातरि तथा श्रुते ॥ ३१ ॥ |
1.1.1.31 | 0121 |
| फ | निष्फल | फूत्कार फकारो निष्फले जल्पे पुष्करे भयरक्षणे । झंझावाते फले फेने फूत्कारे फूस्तथोदितः ॥ ३२ ॥ |
1.1.1.32 | 0121 |
| फ | जल्प | फूत्कार फकारो निष्फले जल्पे पुष्करे भयरक्षणे । झंझावाते फले फेने फूत्कारे फूस्तथोदितः ॥ ३२ ॥ |
1.1.1.32 | 0121 |
| फ | पुष्कर | फूत्कार फकारो निष्फले जल्पे पुष्करे भयरक्षणे । झंझावाते फले फेने फूत्कारे फूस्तथोदितः ॥ ३२ ॥ |
1.1.1.32 | 0121 |
| फ | भयरक्षण | फूत्कार फकारो निष्फले जल्पे पुष्करे भयरक्षणे । झंझावाते फले फेने फूत्कारे फूस्तथोदितः ॥ ३२ ॥ |
1.1.1.32 | 0121 |
| फ | झञ्झावात | फूत्कार फकारो निष्फले जल्पे पुष्करे भयरक्षणे । झंझावाते फले फेने फूत्कारे फूस्तथोदितः ॥ ३२ ॥ |
1.1.1.32 | 0121 |
| फ | फल | फूत्कार फकारो निष्फले जल्पे पुष्करे भयरक्षणे । झंझावाते फले फेने फूत्कारे फूस्तथोदितः ॥ ३२ ॥ |
1.1.1.32 | 0121 |
| फ | फेन | फूत्कार फकारो निष्फले जल्पे पुष्करे भयरक्षणे । झंझावाते फले फेने फूत्कारे फूस्तथोदितः ॥ ३२ ॥ |
1.1.1.32 | 0121 |
| ब | वरुण | बकारो वरुणे पद्मे कलहे विगतौ तथा । |
1.1.1.33 | 0121 |
| ब | पद्म | बकारो वरुणे पद्मे कलहे विगतौ तथा । |
1.1.1.33 | 0121 |
| ब | कलह | बकारो वरुणे पद्मे कलहे विगतौ तथा । |
1.1.1.33 | 0121 |
| ब | विगति | बकारो वरुणे पद्मे कलहे विगतौ तथा । |
1.1.1.33 | 0121 |
| भ | आलि | भश्चालिशुक्रयोर्भावे भश्च दीप्तौ भये च भीः ॥ ३३ ॥ |
1.1.1.33 | 0121 |
| भ | शुक्र | भश्चालिशुक्रयोर्भावे भश्च दीप्तौ भये च भीः ॥ ३३ ॥ |
1.1.1.33 | 0121 |
| भ | दीप्तौ | भश्चालिशुक्रयोर्भावे भश्च दीप्तौ भये च भीः ॥ ३३ ॥ |
1.1.1.33 | 0121 |
| भी | भय | भश्चालिशुक्रयोर्भावे भश्च दीप्तौ भये च भीः ॥ ३३ ॥ |
1.1.1.33 | 0121 |
| भ | धिष्ण्य | भं धिष्ण्ये भूर्भुवि स्थाने मश्चन्द्रे तु विधौ शिवे । |
1.1.1.34 | 0121 |
| भू | भू | भं धिष्ण्ये भूर्भुवि स्थाने मश्चन्द्रे तु विधौ शिवे । |
1.1.1.34 | 0121 |
| भू | स्थान | भं धिष्ण्ये भूर्भुवि स्थाने मश्चन्द्रे तु विधौ शिवे । |
1.1.1.34 | 0121 |
| म | चन्द्र | भं धिष्ण्ये भूर्भुवि स्थाने मश्चन्द्रे तु विधौ शिवे । |
1.1.1.34 | 0121 |
| म | विधि | भं धिष्ण्ये भूर्भुवि स्थाने मश्चन्द्रे तु विधौ शिवे । |
1.1.1.34 | 0121 |
| म | शिव | भं धिष्ण्ये भूर्भुवि स्थाने मश्चन्द्रे तु विधौ शिवे । |
1.1.1.34 | 0121 |
| मू | मौलि | मौलौ च बन्धने मूः स्यात् मा माने वारणेऽव्ययः ॥ ३४ ॥ |
1.1.1.34 | 0121 |
| मू | बन्धन | मौलौ च बन्धने मूः स्यात् मा माने वारणेऽव्ययः ॥ ३४ ॥ |
1.1.1.34 | 0121 |
| मा | मान | मौलौ च बन्धने मूः स्यात् मा माने वारणेऽव्ययः ॥ ३४ ॥ |
1.1.1.34 | 0121 |
| मा | वारण | मौलौ च बन्धने मूः स्यात् मा माने वारणेऽव्ययः ॥ ३४ ॥ |
1.1.1.34 | 0121 |
| मा | अस्मच्छब्दे द्वितीयायाम् | अस्मच्छब्दे द्वितीयायां मा च षष्ठ्यां च मे पुनः । |
1.1.1.35 | 0121 |
| मे | मम | अस्मच्छब्दे द्वितीयायां मा च षष्ठ्यां च मे पुनः । |
1.1.1.35 | 0121 |
| मा | मातृ | मा मातरि तथा लक्ष्म्यां यस्तु वाते यमेऽपि च ॥ ३५ ॥ |
1.1.1.35 | 0121 |
| मा | लक्ष्मी | मा मातरि तथा लक्ष्म्यां यस्तु वाते यमेऽपि च ॥ ३५ ॥ |
1.1.1.35 | 0121 |
| य | वात | मा मातरि तथा लक्ष्म्यां यस्तु वाते यमेऽपि च ॥ ३५ ॥ |
1.1.1.35 | 0121 |
| य | यम | मा मातरि तथा लक्ष्म्यां यस्तु वाते यमेऽपि च ॥ ३५ ॥ |
1.1.1.35 | 0121 |
| य | धातृ | धातर्यपि पशौ यं स्यात् या याने यातरि श्रियाम् । खट्वाङ्गेऽपि च रः कामे तीक्ष्णे वैश्वानरे नरे ॥ ३६ ॥ |
1.1.1.36 | 0121 |
| य | पशु | धातर्यपि पशौ यं स्यात् या याने यातरि श्रियाम् । खट्वाङ्गेऽपि च रः कामे तीक्ष्णे वैश्वानरे नरे ॥ ३६ ॥ |
1.1.1.36 | 0121 |
| या | यान | धातर्यपि पशौ यं स्यात् या याने यातरि श्रियाम् । खट्वाङ्गेऽपि च रः कामे तीक्ष्णे वैश्वानरे नरे ॥ ३६ ॥ |
1.1.1.36 | 0121 |
| या | यातृ | धातर्यपि पशौ यं स्यात् या याने यातरि श्रियाम् । खट्वाङ्गेऽपि च रः कामे तीक्ष्णे वैश्वानरे नरे ॥ ३६ ॥ |
1.1.1.36 | 0121 |
| या | श्री | धातर्यपि पशौ यं स्यात् या याने यातरि श्रियाम् । खट्वाङ्गेऽपि च रः कामे तीक्ष्णे वैश्वानरे नरे ॥ ३६ ॥ |
1.1.1.36 | 0121 |
| या | खट्वाङ्ग | धातर्यपि पशौ यं स्यात् या याने यातरि श्रियाम् । खट्वाङ्गेऽपि च रः कामे तीक्ष्णे वैश्वानरे नरे ॥ ३६ ॥ |
1.1.1.36 | 0121 |
| र | काम | धातर्यपि पशौ यं स्यात् या याने यातरि श्रियाम् । खट्वाङ्गेऽपि च रः कामे तीक्ष्णे वैश्वानरे नरे ॥ ३६ ॥ |
1.1.1.36 | 0121 |
| र | तीक्ष्ण | धातर्यपि पशौ यं स्यात् या याने यातरि श्रियाम् । खट्वाङ्गेऽपि च रः कामे तीक्ष्णे वैश्वानरे नरे ॥ ३६ ॥ |
1.1.1.36 | 0121 |
| र | वैश्वानर | धातर्यपि पशौ यं स्यात् या याने यातरि श्रियाम् । खट्वाङ्गेऽपि च रः कामे तीक्ष्णे वैश्वानरे नरे ॥ ३६ ॥ |
1.1.1.36 | 0121 |
| र | नर | धातर्यपि पशौ यं स्यात् या याने यातरि श्रियाम् । खट्वाङ्गेऽपि च रः कामे तीक्ष्णे वैश्वानरे नरे ॥ ३६ ॥ |
1.1.1.36 | 0121 |
| र | राम | रामे वज्रे च शब्दे स्यात् रा द्रव्ये कनके पुनः । आश्रये नीरदे च स्यात् रुः सूर्ये रक्षणेऽपि च ॥ ३७ ॥ |
1.1.1.37 | 0121 |
| र | वज्र | रामे वज्रे च शब्दे स्यात् रा द्रव्ये कनके पुनः । आश्रये नीरदे च स्यात् रुः सूर्ये रक्षणेऽपि च ॥ ३७ ॥ |
1.1.1.37 | 0121 |
| र | शब्द | रामे वज्रे च शब्दे स्यात् रा द्रव्ये कनके पुनः । आश्रये नीरदे च स्यात् रुः सूर्ये रक्षणेऽपि च ॥ ३७ ॥ |
1.1.1.37 | 0121 |
| रा | द्रव्य | रामे वज्रे च शब्दे स्यात् रा द्रव्ये कनके पुनः । आश्रये नीरदे च स्यात् रुः सूर्ये रक्षणेऽपि च ॥ ३७ ॥ |
1.1.1.37 | 0121 |
| रा | कनक | रामे वज्रे च शब्दे स्यात् रा द्रव्ये कनके पुनः । आश्रये नीरदे च स्यात् रुः सूर्ये रक्षणेऽपि च ॥ ३७ ॥ |
1.1.1.37 | 0121 |
| रा | आश्रय | रामे वज्रे च शब्दे स्यात् रा द्रव्ये कनके पुनः । आश्रये नीरदे च स्यात् रुः सूर्ये रक्षणेऽपि च ॥ ३७ ॥ |
1.1.1.37 | 0121 |
| रा | नीरद | रामे वज्रे च शब्दे स्यात् रा द्रव्ये कनके पुनः । आश्रये नीरदे च स्यात् रुः सूर्ये रक्षणेऽपि च ॥ ३७ ॥ |
1.1.1.37 | 0121 |
| रु | सूर्य | रामे वज्रे च शब्दे स्यात् रा द्रव्ये कनके पुनः । आश्रये नीरदे च स्यात् रुः सूर्ये रक्षणेऽपि च ॥ ३७ ॥ |
1.1.1.37 | 0121 |
| रु | रक्षण | रामे वज्रे च शब्दे स्यात् रा द्रव्ये कनके पुनः । आश्रये नीरदे च स्यात् रुः सूर्ये रक्षणेऽपि च ॥ ३७ ॥ |
1.1.1.37 | 0121 |
| रु | भय | भये शब्दे च री भ्रान्तौ लकारश्चलने पुनः । |
1.1.1.38 | 0121 |
| रु | शब्द | भये शब्दे च री भ्रान्तौ लकारश्चलने पुनः । |
1.1.1.38 | 0121 |
| री | भ्रान्ति | भये शब्दे च री भ्रान्तौ लकारश्चलने पुनः । |
1.1.1.38 | 0121 |
| ल | चलन | भये शब्दे च री भ्रान्तौ लकारश्चलने पुनः । |
1.1.1.38 | 0121 |
| ला | दान | ला दाने लूश्च लवने लश्च लौश्च विडौजसि ॥ ३८ ॥ |
1.1.1.38 | 0121 |
| लू | लवन | ला दाने लूश्च लवने लश्च लौश्च विडौजसि ॥ ३८ ॥ |
1.1.1.38 | 0121 |
| ल | विडौजस् | ला दाने लूश्च लवने लश्च लौश्च विडौजसि ॥ ३८ ॥ |
1.1.1.38 | 0121 |
| लौ | विडौजस् | ला दाने लूश्च लवने लश्च लौश्च विडौजसि ॥ ३८ ॥ |
1.1.1.38 | 0121 |
| ल | अमृत | लश्चामृते दिशायां च लीः श्लेषे वलये तथा । |
1.1.1.39 | 0121 |
| ल | दिशा | लश्चामृते दिशायां च लीः श्लेषे वलये तथा । |
1.1.1.39 | 0121 |
| ली | श्लेष | लश्चामृते दिशायां च लीः श्लेषे वलये तथा । |
1.1.1.39 | 0121 |
| ली | वलय | लश्चामृते दिशायां च लीः श्लेषे वलये तथा । |
1.1.1.39 | 0121 |
| व | वात | वो वाते वरुणे रुद्रे सान्त्वने वाऽव्ययः पुनः ॥ ३९ ॥ |
1.1.1.39 | 0122 |
| व | वरुण | वो वाते वरुणे रुद्रे सान्त्वने वाऽव्ययः पुनः ॥ ३९ ॥ |
1.1.1.39 | 0122 |
| व | रुद्र | वो वाते वरुणे रुद्रे सान्त्वने वाऽव्ययः पुनः ॥ ३९ ॥ |
1.1.1.39 | 0122 |
| व | सान्त्वन | वो वाते वरुणे रुद्रे सान्त्वने वाऽव्ययः पुनः ॥ ३९ ॥ |
1.1.1.39 | 0122 |
| व | पदार्थ | पदार्थ उपमाने च विकल्पे च समुच्चये । |
1.1.1.40 | 0122 |
| व | उपमान | पदार्थ उपमाने च विकल्पे च समुच्चये । |
1.1.1.40 | 0122 |
| व | विकल्प | पदार्थ उपमाने च विकल्पे च समुच्चये । |
1.1.1.40 | 0122 |
| व | समुच्चय | पदार्थ उपमाने च विकल्पे च समुच्चये । |
1.1.1.40 | 0122 |
| वि | श्रेष्ठ | विः श्रेष्ठेऽतीते नानार्थे वै हेतौ पादपूरणे ॥ ४० ॥ |
1.1.1.40 | 0122 |
| वि | अतीत | विः श्रेष्ठेऽतीते नानार्थे वै हेतौ पादपूरणे ॥ ४० ॥ |
1.1.1.40 | 0122 |
| वि | नानार्थ | विः श्रेष्ठेऽतीते नानार्थे वै हेतौ पादपूरणे ॥ ४० ॥ |
1.1.1.40 | 0122 |
| वै | हेतु | विः श्रेष्ठेऽतीते नानार्थे वै हेतौ पादपूरणे ॥ ४० ॥ |
1.1.1.40 | 0122 |
| वै | पादपूरण | विः श्रेष्ठेऽतीते नानार्थे वै हेतौ पादपूरणे ॥ ४० ॥ |
1.1.1.40 | 0122 |
| वः | युष्मान् | द्वितीयायाश्चतुर्थ्याश्च षष्ठ्या युष्मद्बहुत्वके । वश्चासां तु विभक्तीनां द्वित्वे वां कथितो बुधैः ॥ ४१ ॥ |
1.1.1.41 | 0122 |
| वः | युष्मभ्यम् | द्वितीयायाश्चतुर्थ्याश्च षष्ठ्या युष्मद्बहुत्वके । वश्चासां तु विभक्तीनां द्वित्वे वां कथितो बुधैः ॥ ४१ ॥ |
1.1.1.41 | 0122 |
| वः | युष्माकम् | द्वितीयायाश्चतुर्थ्याश्च षष्ठ्या युष्मद्बहुत्वके । वश्चासां तु विभक्तीनां द्वित्वे वां कथितो बुधैः ॥ ४१ ॥ |
1.1.1.41 | 0122 |
| वाम् | युवाम् | द्वितीयायाश्चतुर्थ्याश्च षष्ठ्या युष्मद्बहुत्वके । वश्चासां तु विभक्तीनां द्वित्वे वां कथितो बुधैः ॥ ४१ ॥ |
1.1.1.41 | 0122 |
| वाम् | युष्माभ्याम् | द्वितीयायाश्चतुर्थ्याश्च षष्ठ्या युष्मद्बहुत्वके । वश्चासां तु विभक्तीनां द्वित्वे वां कथितो बुधैः ॥ ४१ ॥ |
1.1.1.41 | 0122 |
| वाम् | युवयोः | द्वितीयायाश्चतुर्थ्याश्च षष्ठ्या युष्मद्बहुत्वके । वश्चासां तु विभक्तीनां द्वित्वे वां कथितो बुधैः ॥ ४१ ॥ |
1.1.1.41 | 0122 |
| वि | आकाश | आकाशे विहगे विश्च शं श्रेयसि सुखेऽव्ययः । |
1.1.1.42 | 0122 |
| वि | विहग | आकाशे विहगे विश्च शं श्रेयसि सुखेऽव्ययः । |
1.1.1.42 | 0122 |
| शम् | श्रेयस् | आकाशे विहगे विश्च शं श्रेयसि सुखेऽव्ययः । |
1.1.1.42 | 0122 |
| शम् | सुख | आकाशे विहगे विश्च शं श्रेयसि सुखेऽव्ययः । |
1.1.1.42 | 0122 |
| शा | शान्त | शा तु शान्ते च सास्नायां शीः शये हिंसनेऽपि च ॥ ४२ ॥ |
1.1.1.42 | 0122 |
| शा | सास्ना | शा तु शान्ते च सास्नायां शीः शये हिंसनेऽपि च ॥ ४२ ॥ |
1.1.1.42 | 0122 |
| शी | शय | शा तु शान्ते च सास्नायां शीः शये हिंसनेऽपि च ॥ ४२ ॥ |
1.1.1.42 | 0122 |
| शी | हिंसन | शा तु शान्ते च सास्नायां शीः शये हिंसनेऽपि च ॥ ४२ ॥ |
1.1.1.42 | 0122 |
| शु | चन्द्र | शुश्चन्द्रे षः सदारः स्यात् तथेष्टे प्रसवे तु षूः । |
1.1.1.43 | 0122 |
| ष | सदार | शुश्चन्द्रे षः सदारः स्यात् तथेष्टे प्रसवे तु षूः । |
1.1.1.43 | 0122 |
| षू | इष्ट | शुश्चन्द्रे षः सदारः स्यात् तथेष्टे प्रसवे तु षूः । |
1.1.1.43 | 0122 |
| षू | प्रसव | शुश्चन्द्रे षः सदारः स्यात् तथेष्टे प्रसवे तु षूः । |
1.1.1.43 | 0122 |
| स | सूर्य | सः सूर्ये च परोक्षे च सं शङ्का वाऽव्ययस्तु सः ॥ ४३ ॥ |
1.1.1.43 | 0122 |
| स | परोक्ष | सः सूर्ये च परोक्षे च सं शङ्का वाऽव्ययस्तु सः ॥ ४३ ॥ |
1.1.1.43 | 0122 |
| स | शङ्का | सः सूर्ये च परोक्षे च सं शङ्का वाऽव्ययस्तु सः ॥ ४३ ॥ |
1.1.1.43 | 0122 |
| स | सङ्गार्थ | सङ्गार्थे शोभनार्थे च प्रकृष्टार्थसमर्थयोः । |
1.1.1.44 | 0122 |
| स | शोभनार्थ | सङ्गार्थे शोभनार्थे च प्रकृष्टार्थसमर्थयोः । |
1.1.1.44 | 0122 |
| स | प्रकृष्टार्थ | सङ्गार्थे शोभनार्थे च प्रकृष्टार्थसमर्थयोः । |
1.1.1.44 | 0122 |
| स | समर्थ | सङ्गार्थे शोभनार्थे च प्रकृष्टार्थसमर्थयोः । |
1.1.1.44 | 0122 |
| स | प्रथमान्ततद् | प्रथमान्ततदः स्थाने स्मृतौ लक्ष्म्यां च सोच्यते ॥ ४४ ॥ |
1.1.1.44 | 0122 |
| सा | स्मृति | प्रथमान्ततदः स्थाने स्मृतौ लक्ष्म्यां च सोच्यते ॥ ४४ ॥ |
1.1.1.44 | 0122 |
| सा | लक्ष्मी | प्रथमान्ततदः स्थाने स्मृतौ लक्ष्म्यां च सोच्यते ॥ ४४ ॥ |
1.1.1.44 | 0122 |
| ह | शूलिन् | हः शूलिनि करे नीरे क्रोधगर्भप्रभाषणे । निवासेऽथाव्ययो हः स्यात् सम्बुद्धौ पादपूरणे ॥ ४५ ॥ |
1.1.1.45 | 0122 |
| ह | कर | हः शूलिनि करे नीरे क्रोधगर्भप्रभाषणे । निवासेऽथाव्ययो हः स्यात् सम्बुद्धौ पादपूरणे ॥ ४५ ॥ |
1.1.1.45 | 0122 |
| ह | नीर | हः शूलिनि करे नीरे क्रोधगर्भप्रभाषणे । निवासेऽथाव्ययो हः स्यात् सम्बुद्धौ पादपूरणे ॥ ४५ ॥ |
1.1.1.45 | 0122 |
| ह | क्रोधगर्भप्रभाषण | हः शूलिनि करे नीरे क्रोधगर्भप्रभाषणे । निवासेऽथाव्ययो हः स्यात् सम्बुद्धौ पादपूरणे ॥ ४५ ॥ |
1.1.1.45 | 0122 |
| ह | निवास | हः शूलिनि करे नीरे क्रोधगर्भप्रभाषणे । निवासेऽथाव्ययो हः स्यात् सम्बुद्धौ पादपूरणे ॥ ४५ ॥ |
1.1.1.45 | 0122 |
| ह | सम्बुद्धि | हः शूलिनि करे नीरे क्रोधगर्भप्रभाषणे । निवासेऽथाव्ययो हः स्यात् सम्बुद्धौ पादपूरणे ॥ ४५ ॥ |
1.1.1.45 | 0122 |
| ह | पादपूरण | हः शूलिनि करे नीरे क्रोधगर्भप्रभाषणे । निवासेऽथाव्ययो हः स्यात् सम्बुद्धौ पादपूरणे ॥ ४५ ॥ |
1.1.1.45 | 0122 |
| हा | शोक | अव्ययो हा स्मृतः शोके तथा दुःखविषादयोः । |
1.1.1.46 | 0122 |
| हा | दुःख | अव्ययो हा स्मृतः शोके तथा दुःखविषादयोः । |
1.1.1.46 | 0122 |
| हा | विषाद | अव्ययो हा स्मृतः शोके तथा दुःखविषादयोः । |
1.1.1.46 | 0122 |
| हि | हेतु | हि हेतौ पादपूर्तौ च विशेषे चावधारणे ॥ ४६ ॥ |
1.1.1.46 | 0122 |
| हि | पादपूर्ति | हि हेतौ पादपूर्तौ च विशेषे चावधारणे ॥ ४६ ॥ |
1.1.1.46 | 0122 |
| हि | विशेष | हि हेतौ पादपूर्तौ च विशेषे चावधारणे ॥ ४६ ॥ |
1.1.1.46 | 0122 |
| हि | अवधारण | हि हेतौ पादपूर्तौ च विशेषे चावधारणे ॥ ४६ ॥ |
1.1.1.46 | 0122 |
| हि | स्फुट | स्फुटे दानेऽथाव्ययो ही दुःखहेतौ च विस्मये । विषादे चाव्ययो हं त्वनुनये कोपभाषणे ॥ ४७ ॥ |
1.1.1.47 | 0122 |
| हि | दान | स्फुटे दानेऽथाव्ययो ही दुःखहेतौ च विस्मये । विषादे चाव्ययो हं त्वनुनये कोपभाषणे ॥ ४७ ॥ |
1.1.1.47 | 0122 |
| ही | दुःखहेतु | स्फुटे दानेऽथाव्ययो ही दुःखहेतौ च विस्मये । विषादे चाव्ययो हं त्वनुनये कोपभाषणे ॥ ४७ ॥ |
1.1.1.47 | 0122 |
| ही | विस्मय | स्फुटे दानेऽथाव्ययो ही दुःखहेतौ च विस्मये । विषादे चाव्ययो हं त्वनुनये कोपभाषणे ॥ ४७ ॥ |
1.1.1.47 | 0122 |
| ही | विषाद | स्फुटे दानेऽथाव्ययो ही दुःखहेतौ च विस्मये । विषादे चाव्ययो हं त्वनुनये कोपभाषणे ॥ ४७ ॥ |
1.1.1.47 | 0122 |
| हम् | अनुनय | स्फुटे दानेऽथाव्ययो ही दुःखहेतौ च विस्मये । विषादे चाव्ययो हं त्वनुनये कोपभाषणे ॥ ४७ ॥ |
1.1.1.47 | 0122 |
| हम् | कोपभाषण | स्फुटे दानेऽथाव्ययो ही दुःखहेतौ च विस्मये । विषादे चाव्ययो हं त्वनुनये कोपभाषणे ॥ ४७ ॥ |
1.1.1.47 | 0122 |
| हुम् | परिप्रश्न | हुमव्ययः परिप्रश्ने वितर्के वचने तु हौ । |
1.1.1.48 | 0122 |
| हुम् | वितर्क | हुमव्ययः परिप्रश्ने वितर्के वचने तु हौ । |
1.1.1.48 | 0122 |
| हौ | वचन | हुमव्ययः परिप्रश्ने वितर्के वचने तु हौ । |
1.1.1.48 | 0122 |
| हे | कुत्सा | हे कुत्सायां तथा हे तु हेतौ सम्बोधने तु हौ ॥ ४८ ॥ |
1.1.1.48 | 0122 |
| हे | हेतु | हे कुत्सायां तथा हे तु हेतौ सम्बोधने तु हौ ॥ ४८ ॥ |
1.1.1.48 | 0122 |
| हे | सम्बोधन | हे कुत्सायां तथा हे तु हेतौ सम्बोधने तु हौ ॥ ४८ ॥ |
1.1.1.48 | 0122 |
| हौ | सम्बोधन | हे कुत्सायां तथा हे तु हेतौ सम्बोधने तु हौ ॥ ४८ ॥ |
1.1.1.48 | 0122 |
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|---|---|
| title | एकाक्षरनाममाला |
| author | मलधारिगच्छीयश्रीसुधाकलशमुनि: |
| bookFullName | अनेकार्थरत्नमञ्जूषायां श्रीसमयसुन्दरसन्दृब्धाष्टलक्षार्थीत्यादि नाना रत्नानि |
| bookSeriesDetails | श्रेष्ठि लालभाइ जैनपुस्तकोद्धारे ग्रन्थाङ्कः ८१ |
| editor | सूर्यपुरवास्तव्यश्रीयुतरसिकदासतनुजः कापडियेत्युपाह्वो हीरालालः |
| editorQualifications | एम्. ए. इत्युपाधिविभूषितः सभाष्यसटीकतत्त्वार्थाधिगमसूत्रादिग्रन्थानां संशोधको न्यायकुसुमाञ्जल्यादिग्रन्थानां विवेचनात्मकभाषान्तरकर्ताऽऽर्हतदर्शनदीपिकायाः प्रणेता च । |
| publisher | जीवनचन्द्र साकरचन्द्र जह्वेरीद्वारा श्रेष्ठि देवचन्द लालभाइ जैनपुस्तकोद्धारसंस्था |
| pressDetails | रामचन्द्र येसू शेडगेद्वारा निर्णयसागराख्ययन्त्त्रालये मुद्रयित्वा प्रकाशितः |
| publicationYear | 1933 A.D. |
| dataEntryBy | Dr. Dhaval Patel |
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| proofReadBy | Dr. Dhaval Patel |
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| credits | 1. SRKKF for funding. 2. Acharya Shri KailasaSagarsuri Gyanmandir for providing us the scanned book to digitize. 3. Dr. Dhaval Patel for spending time to digitize, proofread and anontate the data. |
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