;METADATA ;title{एकाक्षरीनाममाला} ;author{रतनू वीरभांण} ;bookFullName{एकाक्षरकोषसंग्रहः} ;bookSeriesDetails{} ;editor{Editor of 1 to 26 koshas - Pannyas Ramnikvijay, Reeditor - Muni Rajsundarvijay} ;editorQualifications{} ;publisher{श्रुतज्ञान संस्कारपीठ, वासणवाळा कम्पाउण्ड, विश्वनंदिकर जैन देरासर के सामने, भगवान नगर का टेकरा, अरुण सोसायटी के पास, पालडी, अहमदाबाद-७, चंपकभाई: मो. 9436010323, निरंजन शाह: मो.9825860488, Website - www.rajparivarindia.com, Email - shrutgnan@yahoo.com} ;pressDetails{जय जिनेन्द्र ग्राफिक्स (नितीन शाह - जय जिनेन्द्र), ३०, स्वाती सोसायटी, सेंट झेवियर्स स्कूल रोड, नवरंगपुरा, अहमदाबाद. जय जिनेन्द्र: मो. 9825024204, कुश: मो. 9925617992} ;publicationYear{2019 A.D.} ;dataEntryBy{Dr. Dhaval Patel} ;dataEntryEmail{drdhaval2785@gmail.com} ;proofReadBy{Dr. Dhaval Patel} ;proofReaderEmail{drdhaval2785@gmail.com} ;annotatedBy{} ;annotatorEmail{} ;version{0.1.0} ;projectDetails{This project is aimed at creating a database and related software tools to access Indian koshas, both online and offline. The project is funded by generous donation of Shree Ramkrishna Knowledge Fondation, Surat.} ;projectWebPage{http://github.com/sanskrit-kosha/kosha} ;emailTo{drdhaval2785@gmail.com} ;description{} ;shortCode{ENRV} ;funding{Shree Ramkrishna Knowledge Foundation.} ;licence{GNU GPL v3.0} ;credits{1. SRKKF for funding. 2. Muni Rajsundarvijay ji for allowing us to digitize the texts. 3. Dr. Dhaval Patel for spending time to type and proofread the data.} ;dataFormatDetails{See https://github.com/sanskrit-kosha/kosha/blob/master/docs/annotation_thoughts.md for details.} ;editorialChanges{There are two versions of this work in this volume. The present work is the one which is published from page 196 onwards in appendix.} ;nymic{homo} ;pagenum{true} ;linenum{false} ;chapterArrangements{} ;newVerseNumbersAtChangeOf{never} ;newLineNumbersAtChangeOf{never} ;version0.0.1{12 April 2020} ;version0.0.2{25 May 2020} ;version0.0.3{25 May 2020} ;version0.0.4{25 May 2020} ;version0.1.0{25 May 2020} ;version0.2.0{} ;version0.2.1{} ;version0.2.2{} ;version0.3.0{} ;version0.3.1{} ;version0.3.2{} ;version0.3.3{} ;version0.3.4{} ;version0.3.5{} ;version0.3.6{} ;version1.0.0{} ;CONTENT ;p{0202} ;c{[३] कवि रतन वीरभांण कृत राजस्थानीभाषानिबद्ध एकाक्षरी नाममाला} ;c{॥ दोहा ॥} कहत अकार ज विष्नकूं, पुनि महेस मत मांन । आ ब्रह्माकूं कहत है, ई जुग मा रमा जांन ॥ १ ॥ लघु उकार संकर कह्यौ, दीरघ विष्णु स देष । देवमात लघु रि कहै, दीरघ दनुज विशेष ॥ २ ॥ लघु लृकार सुरमात पुनि नागमात गुरु होय । ए जु कहत हे विष्णुकौ, ऐ जु महेसुर सोय ॥ ३ ॥ ओ ब्रह्मा जु अनंत औं परब्रह्म अभिमान । कविकुल सब ही कहत यूं, अः महेस उर आंन ॥ ४ ॥ क ब्रह्माकूं कहत कवि, वाय सूर पुनि लेष । कहत आतमा सुष कहूं, क प्रकास अरु लेष ॥ ५ ॥ कं सिर कं जल कं जु सुख, कु धरती धर चित्त । कूं कुसमितकूं जानियो, बहु विवेक धरि चित्त ॥ ६ ॥ खं इंद्रिय नभ खं कह्यौ, खं जु सरग पुनि सोय । कहै सु सून्यसे खं सबै, खं खंडग पुनि हौय ॥ ७ ॥ घंटा किंकिनि मेघसूं, कहत घ कार सब कोय । पुनि धुनिहूंसूं घू कहै, दक्ष गुनीजन लोय ॥ ८ ॥ कहत ङकार जूं भैरवह, अरु जि विसन जिय जांन । पुनि ङकार स्वरसूं कहै, चतुर चोर कहु मांन ॥ ९ ॥ चंद हि कहत चकार सब, अरु जु चोर कह मांन । सोभासूं सब कहत है, पक्ष सबदसूं जांन ॥ १० ॥ छं निरमल सब ही कहै, बहुर बीजुरी देष । छेदनहूकूं कहत कवि, पुनि जु संबर लेष ॥ ११ ॥ कहत जकार जु वेगसूं, अरु जु तेजसूं कोय । पूजाहूंसूं सब कहै, जेता जय वह होय ॥ १२ ॥ कहत झकार जु भैरवह, बहुर नष्ट कहुँ सोय । पुनि झकार वंचक कह्यौ, घरघर स्वर ही होय ॥ १३ ॥ मूढ रूप विषयातमा, अरु जु गायन हि गाय । झरजर स्वरसूं कहत है, सबै ञकार बनाय ॥ १४ ॥ ट पृथिवीसूं कहत कवि, टं वायस बहु जांन । कहत टकार जु ईश्वरी, वरहु जु स्वस्तन मांनि ॥ १५ ॥ कहत ठकार विसालसूं, पुनि धनसूं सब कोय । चंदमंडल ठं कहत कवि, ड संकरधुनि होय ॥ १६ ॥ ढक्काकूं ढ कहत कवि, ध्वनि निगूढ कह जांन । पुनि णकार कहि जांनसू, अरु जु स्तुति कहु आंन ॥ १७ ॥ चोर क्रोध पुनि पुछि कहुँ, कहुँ तकार दे चित्त । भयरक्षण जु थकार कहुँ, सिला समूही मित्त ॥ १८ ॥ वेद दांन दातारसूं, अरू कलित्र द मांनि । धां धात धन बंधन हि, कहत धकार सु जांनि ॥ १९ ॥ कहत जांन विश्वास पुनि, अरु जु निषेद नकार । नौ नावकहू कहत है, पंडित समझ निहार ॥ २० ॥ पवन पातरि पावन कहुँ, कहुँ पकार नित मित्त । रण्य सुसुप्त फकार कहुँ, प्रगट जु तिन कहुं नित्त ॥ २१ ॥ झंझावाय फकार कहुँ, कहुँ फकार भयरक्ष । निष्टजला सु फकार कहुँ, अरु फकार ही दक्ष ॥ २२ ॥ फूंकारे फूं कहत कवि, अफळ वचन फू आहि । पुनि बकार संग्राम कहि, अरु प्रवेस कहुँ मांहि ॥ २३ ॥ भ नक्षत्र पुनि भ्रमर, भ दीपत भानू भूम । भयकारण भी कहत सब, ता कहूं चित्त न झूम ॥ २४ ॥ चंद्र रुद्र सिर मा कहत, मा लच्छी परमान । माल मात अष्णा...मी, मुनि बंधन मू जांनि ॥ २५ ॥ मं जम काल यकार कहि, सूर श्रेष्ठ मन मांन । जांन जात अरु त्याग कहुं, बुधजन कहत सुजांन ॥ २६ ॥ काम अनल अरु वज्र पुनि, शब्द रूप धर चित्त । कहुँ रकार जल स्रवनको, रट्टन भय कहुं नित्त ॥ २७ ॥ इंद्र लवन दत व्याज पुनि, कहि लकार परसिद्ध । ली श्लेषम लयसूं कहै, लः निस्तक कहु व्रिद्ध ॥ २८ ॥ सांत्वन वरनु रवी त कहुं, कहुं वकार समरत्थ । गति नय नर अरु श्रेष्ठ पुनि, कहुं वकारके अर्थ ॥ २९ ॥ कहत सकार परोखकूं, पुनि सोमा अति श्रेष्ठ । शं कल्यानह कहत है, संजुक्त ति पुनि श्रेष्ठ ॥ ३० ॥ ;p{0203} सयनकाज सी कहत कवि, ...वीदो(?)हंसा मान । कहत षकार परोखकूं, झाल खरी कहुं ठान ॥ ३१ ॥ कहत षकार जु स्नेहकूं, अरु सूला कहुं मान । हरह हकार विचित्र है, हे संबोधन ठान ॥ ३२ ॥ कहत क्षकार जु क्षीमकूं, क्षमा क्षनेका जांन । आद अकार क्षकार लौं, यह विध बरनत भांन ॥ ३३ ॥ विदुषन मुख सुनि तरक षट, अष्टादस हि पुरांन । नाममाल एकाक्षरी, भाषी रतनूं भांन ॥ ३४ ॥ ;c{इति श्रीघडोईरा रतनूं वीरभांण कृत एकाक्षरी नाममाला सम्पूर्णा ॥ सं. १९५६ ना वर्षे श्रावणवदि ३ रवौ लिषिता श्रीगोडीजी प्रशादात्‌ ॥}